बेवजह अदावत
बेवजह अदावत
किसी के अश्कों पर मुस्कुराने का,
हुनर नहीं है मुझमें।
किसी को नीचा दिखाकर इतराने का,
हुनर नहीं है मुझमें।
बेवजह किसी शक्स की अदावत,
पाल कर दिल में।
दिन — रात जल भुनने का,
हुनर नहीं है मुझमें।
वो ताकते रहते है मौका,
मुझपर वार करने का।
अपने सारे काम काज को,
एक किनारे लगा कर।
जाने क्या हासिल कर लेंगे,
मुझे जमीन पर लाकर।
अच्छा होता ताकत लगाते,
और खुद उठ जाते मुझसे ऊपर।
खुद बढ़ो आगे और,
दूसरे को भी बढ़ने दो।
मिलजुल कर आपस में,
नया समाज गढ़ने दो।
लड़ते हैं जब भी दो,
फायदा तीसरा ले जाता है।
लड़—लड़ कर आपस में,
किसी को राज करने का मौका ना दो।