बेटी
बेटी
पापा ! मुझे, मेरे हिस्से का
थोड़ा सा ,प्यार दे दो
भाई की तरह दादी !
मुझे भी, अपना लाड़ दे दो
मैं पराई हुई कब से ?
पूछती हूं आज सबसे,
क्यों मेरे हिस्से में, आज
ये नफरत है आई
पूछती हूं मैं आज
तुमसे भी, ताई !
भाग्य तो हमारे कर्म से
है, बनते और बिगड़ते
पर न जाने क्यों ?
बेटी जनने पर मूढ़ जन
मेरी मां को ही, ताना
दे देकर, उनसे ,हैं झगड़ते
पर सोचो, यदि बेटी न होती
तो क्या सृजन होता ?
न तीज, न त्योहार होता
न स्नेह न रक्षा के धागे
न कोई व्यवहार होता
न बहिन होती, न प्यार होता
सुन हे ! सृजन हार तब कितना
सूना सूना तेरा यह संसार होता
