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Zeegyasa Kashyap

Inspirational Children

4.8  

Zeegyasa Kashyap

Inspirational Children

माता भाग कौर

माता भाग कौर

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भाग भरी से भारत का

          हतभाग्य बदलने लगा, 

सन् छियासठ से पुनः 

          चन्द्रिका का नव उत्कर्ष हुआ। 


सिक्ख जोन ऑफ आर्क बनीं

           झाबल कलां की वह पुत्री, 

पेरो शाह के यहाँ जन्मी

            वीरता की वह प्रतिमूर्ति। 


शस्त्र विद्या जिसकी विरासत

            पिता की वह श्रेष्ठ शिष्या, 

संत योद्धा में सिरमौर 

            मालो शाह की सिंह कन्या। 


बचपन न रहा तब सुखकर

             जब आया सन् पचहत्तर, 

क्रूरता की सीमा पार 

             हुआ नौवें गुरु पर वार। 


सुनकर सर कलम का प्रसंग 

              हुई थी वह व्यथित यों,

निर्भीकता व साहस ही 

              बन गए उसके आभूषण त्यों । 


आनंदपुर साहिब जाकर

              उसने अमृतपान किया, 

सोलह सौ निन्यानवे में 

               खालसा का नाम लिया। 


गुरु गोविंद की लड़ाका 

               बनने की उसमें चाह थी, 

पर रूढ़ियों में जकड़ी

               उसकी न वह राह थी। 


सत्रह सौ चार में

               उसे एक संदेश मिला, 

आनंदपुर साहिब को 

               मुगलों ने था घेर लिया ।

पहाड़ी प्रमुखों ने भी

              मुगलों का ही साथ दिया,

घेराबंदी कर सिक्खों की 

              बुभुक्षा पर वार किया।


 निधान सिंह की वह 

             पतिव्रता कलत्र थी, 

 न्याय व समानता की

             दीप्तिमान नक्षत्र थी। 


उधर किले में जब 

             अल्पभंडार समाप्त हुआ,

 शूरवीरों ने पल्लव व 

             छाल को अपना लिया। 


सहनशीलता क्षीण हुई 

            धीरता अधीर हुई,

वजी़र खान की योजना

            अंततः फलीभूत हुई।


विश्वासघात का आया चरम 

            टूटा दसवें गुरु का भ्रम,

 विस्मृत कर अपना कर्म 

           त्याग दिया सिक्खों ने धर्म ।


महान सिंह रतौल आए

          साथ अपने त्यागपत्र लाए,

 चालीस सिक्खों को लेकर 

         अकेला उन्हें छोड़ आए। 


पर क्या इसे हम साथ कहें 

         जो प्रतिकूलता से यों डरे ? 

अनुकूलता पर होकर निर्भर 

         साथ रहे और साथ चले ?


जब भागो को यह ज्ञात हुआ

         उसने हर बंधन तोड़ दिया,

मरुस्थल की स्त्रियों को 

         विप्लव रव से अलंकृत किया।


जब रेगिस्तानियों का हुआ आगमन 

         आलोचनाओं के शूल झड़े,

शस्त्र शोभित वीरांगनाओं ने 

         कायरता पर तंज कसे।


 शर्त को शर्त से काटा 

         स्वाभिमान पर वार किया,

 अश्वों की लगाम पकड़ 

         घर का भार सौंप दिया।


 कृत्यों पर होकर लज्जित

         वे क्लांतियों को भूल गए,

 माई भागो के नेतृत्व में

         वे गुरु को खोजने चले। 


गुरु किले को त्यज

          मालवा में थे अवस्थित,

 पीछा करती मुगल सेना 

          हो चुकी थी तृषित।


भागो ने था व्यूह रचा

           खिद्राना में छल बुना,

 शिविरों का जाल बिछा

           मुगलों को आमंत्रण दिया।


 भीषण युद्ध आरंभ हुआ

         धूलधूसरित व्योम हुआ, 

क्षिति ने रक्तपान किया

        समीर ने सिंहनाद किया। 


दंभ - अभिमान चूर हुए 

         जुल्मों के क्षण दूर हुए,

तभी किसी ने पीछे से 

         भागो को था आहत किया,

देख गुरु ने यह दृश्य 

         तीरों से उसको भेद दिया। 


बाणों की अविरल वर्षा में 

         पातकियों का उद्धार हुआ।

 बूँद बूँद के लिए विकल

         धूर्तों का सर्वनाश हुआ। 


अन्यायी समुद्र से सिक्त 

         करने आए थे न्याय रिक्त,

देखकर सब सिक्खों को मृत 

         सोचा हो गया उद्देश्य सिद्ध ।


किंतु, कहानी अभी बहाल थी-

         किसी में अब भी जान थी,

गुरु ने वहाँ प्रवेश किया

         चालीस सिक्खों को माफ किया। 


त्यागपत्र विदीर्ण किया

         खिद्राना को मुक्तसर किया।

भागो को अपने साथ लिया 

         अंगरक्षक का मान दिया। 


समानता की लहर चली 

          स्त्री भी अब वीर बनी।

क्या आज वही रवानी है ?

          या यह प्राचीन कहानी है?

 क्या भारत पर आई जवानी है?

          या चल रही मनमानी है?


हर चाह को राह मिलती नहीं 

          किंवदंतियाँ मिटती नहीं,

जो आज अल्पज्ञात है

           कल पूर्णज्ञात अवश्य बने!

सोने की चिड़िया फिर चहके!

           भागो की वीरता फिर महके! 



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