चलचित्र : जीवन-चरित्र
चलचित्र : जीवन-चरित्र
गुमनामी के अंधेरों से कर क्रीड़ा
ढूँढ रही हूँ जिंदगी का एक टुकड़ा,
न राह, न मंजिल, न है प्रकाश पुंज
शेष है मात्र शूल व कंटक कुंज ।
फलक के तारों से
आई हूंँ ज़मीन पर,
पाई है जु़बान किंतु
बनानी है पहचान अभी ।
विस्मित कर अपनी शाश्वती
भले ही मैं लुप्त हूंँ।
निर्भीकता के आंँचल में
अब न जुल्मों को सहूँ।
अश्लीलता न मेरा कर्म,
व्यवसायीकरण न मेरा धर्म ।
मैं हूंँ समाज, मैं हूंँ आईना,
मुझमें है जिंदगी, ऊर्ध्वमनस का गहना ।
मैं वैश्वानरी-गंध, करती जीवंत सद्ग्रंथ।
इतिहास से करूंँ साक्षात्कार,
भविष्य के सजाऊंँ स्वप्न अपार।
वर्तमान को दूँ चुनौती,
दान करूंँ उम्मीदों के मोती ।
आशा के सूर्य तलाश करूंँ।
रिश्तों की इबादत में झुकूँ।
देशभक्ति का जुनून लिए
मैंने भी शहादत पाई है।
कृषक-वर्ग में हो अवतरित
श्रम-सीकरों से प्यास बुझाई है।
नवरस मुझमे हैं समाहित
मैं हर क्षण की साक्षी।
संगीत मेरा अंग मात्र,
मैं हूँ जीवनदायिनी।
चित्र मेरे गतीशील, लक्ष्य मेरा है दृढ़-
शमा जिस क़द्र जले नुमाइश के लिए
मैं भी जलती रहूँ सद्-ख्वाइश के लिए।
