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Zeegyasa Kashyap

Inspirational

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Zeegyasa Kashyap

Inspirational

शैदा-ए-वतन

शैदा-ए-वतन

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मरघट वह्नि में दहक रहा, 

गुलशन रंजिशों से महक रहा, 

रवि, शशि, मही सब साक्षी हैं, 

बन मृतक, पृथक मानव हुआ ।


कण-कण अब रण की मांग करे,

आदि भी अंत का जाप करे,

किंचित भी तुम डरो नहीं ,

सरहद की मांग भरो वहीं ।


तिमिर में तुम प्रकाश भरो,

क्षिप्र कर में शस्त्र गहो,

बन रश्क-ए-चमन, शैदा-ए-वतन, 

तुम वसुंधरा में रत्न जड़ो।


अस्मिता, आन और मान तुम, 

इस गुलिस्ताँ की शान तुम,

रंग केसरी तुमसे सुसज्जित, 

भारत का अभिमान तुम ।


तुम रक्त की विरुदावली, 

तुम वज्र की वचनावली,

हे शूरसिद्ध ! औ अग्निवीर !

तुम धीर मंडित अक्षावली। 


प्रचंड तुम, अखंड तुम,

मां भारती के खंड तुम, 

अभय, अटल, दुर्धर्ष तुम, 

पियूष व प्रत्यूष तुम।


उन्मुक्त तुम डटे रहो, 

श्रम सीकरों से तुम सजो,

कोटि कुटुंब के लाल तुम,

कुल की चिंता में न जलो ।


भले कलाई सूनी है,

समक्ष तेरे खूनी है।

लख उसे लज्जा त्याग दो,

सीने में गोली दाग दो। 


शमन करो, दमन करो,

वतन में तुम अमन करो, 

आतंक की हद हो चली, 

जतन करो, पतन करो। 


सिंह की तुम दहाड़ हो, 

पतझड़ में तुम बहार हो, 

रुधिर से खेलो फाग तुम,

श्री राम के अवतार हो ।


तिरंगे को तुम वरण करो,

प्रति अवयव से अंकुरित फलो,

बन रश्क-ए-चमन, शैदा-ए-वतन, 

तुम वसुंधरा में रत्न जडो़।


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