कंचन प्रभाती
कंचन प्रभाती
निराशा - हताशा ने किया
विमुख हमें आशा से,
किंवदंतियों ने किया
वंचित मातृभाषा से,
ढूँढने को निकले थे हम
लक्ष्य पथ जीवन का,
गर्दिश, बंदिश और रंजिश
ने दी मात्र विफलता।
न हाथ में शस्त्र
न कटि में तलवार
न ही अश्वारूढ़ हैं।
हम हैं राही
विद्या के अभिलाषी
दृढ़ता हमारा ग़ुरूर है।
शेष था जो रस जीवन में
साक्षात्कार उससे आपने करवाया,
स्वर्णिम आभा से आलोकित
जीवन हमारा जगमग बनाया।
कर्णप्रिय वाणी से किया
आपने हृदय में पदार्पण।
निःस्वार्थ भाव से आप
करती रहीं जन - जागरण ।
ज्ञान की ज्योति नहीं
शिवपुरी में अलख जलाया है,
आपने दृढ़ विश्वास से
सुप्त मातृप्रेम को जगाया है।
नित नव - उमंग व आशा लिए
आती है आध्यात्मिक उषा,
मन - मस्तिष्क व हृदय पटल पर
अंकित करती नव - गाथा।
पर - जीवन से अनभिज्ञ
पिरोती आनंद की माला,
सत् व्यक्तित्व विकास ही
आपने जीवन लक्ष्य है ठाना।