अर्धांगिनी
अर्धांगिनी
खिलाऊँ प्रेम की बगिया सदा अर्धांगिनी बनकर,
तिलक यश का सजाऊँ मैं
साहस को सदा भरकर।
महकाऊँ सृष्टि की बगिया सदा सौंदर्य में भरकर,
कहाती हूं जगत जननी , जगत आधार मैं बनकर।
बढ़ाऊँ निराशा में भी मैं आशा अर्धांगिनी बनकर,
सजाऊँ थाल में दीपक सदा ही रोशनी बनकर।
सकल सृष्टि सँवारूँ मैं सदा अर्धांगिनी बनकर,
बिना बोले ही समझूँ बात तेरी संगिनी बनकर।।
