मां
मां
घुटनों पे रेंगते रेंगते जब पैरों पे खड़े हो गई,
मां तेरी ममता की छांव में जाने कब बड़ी हो गई !
लगा जैसे जन्नत का हमने दीदार किया था,
गोद में उठा कर जब मां तूने प्यार किया था।
सोचा के हर दुख में मां का ही नाम क्यों निकलता है,
क्यों मां के सामने ही सब चलता है।
उसकी आंचल की गोद में क्यों सकून मिलता है,
दुनिया इतनी बुरी नहीं, उसका हाथ
पकड़ आगे जीने का जनून मिलता है।
ऐसा क्या है जो एक मां न कर पाए काम,
आज्ञा पा कर वनवास चले खुद भगवान राम।
जब कागज पे लिखा मेंने मां का नाम,
कलम अदब से बोल उठी हो गए चारो धाम।
खुश हो जाए तो लगता है मां को बताऊं,
दुख हो जाए तो सोचती हूं मां से कैसे छिपाऊं।
आप सुख को पीछे रख जो हमारे लिए दुआ करती हैं,
हमारी खामोशी के पीछे दर्द पहचान ले, ये मां ही हो सकती है।
अपनी नींद भुला कर जो हमे सुलाती है,
खुद भूकी रह कर जो हमें खिलाती है,
ऐसी ममता कूट कूट कर जिसमें भरी होती है,
खुद मां बन कर समझ आए कि मां क्या होती है।
आज मेरे आंगन में भी एक फूल खिला है,
मुझे भी मां बनने का सुख मिला है।
अब शायद समझ पाऊं कि तू बच्चों को
हमेशा कैसे आगे रख पाती है,
घुटने के दर्द में भी कैसे दौड़ी चली आती है।
तुझ जैसी बन पाऊं मां, ये अरमान है मेरा
कभी कदम डगमगाए तो आसरा है तेरा।
मेरा घर भी तेरे घर जैसा खिले,
मेरा अंश भी बोले, फिर यही गोद और यही मां मिले।
