स्कूल की यादें
स्कूल की यादें
नींद खुली झटपट उठ बैठा,
मम्मी ने आज जल्दी ना उठाया,
ऐसा क्यों समझ ना पाया,
थोड़ी देर बाद फोन बिस्तर पर पाया,
तब समझते देर न लगी,
लग रही थी फोन पर कक्षा,
छाया विश्व में कोविड का सायाI
आज फिर रह-रहकर,
स्कूल की याद सताती है,
बीती पुरानी बातें,
बहुत कुछ याद दिलाती है ,
वो दिन भी क्या दिन थे ,
सुबह से शाम स्कूल की बातें ,
काम कर थक जाते तो बीत जाती रातें,
अब यह कैसा मंजर दिखलाया,
छाया विश्व में कोविड का सायाI
सुबह का सूरज रोज देखा करते थे ,
प्रार्थना के मैदान में धूप सेंका करते थे,
उछलना कूदना दोस्तों संग मस्ती करना,
सब याद आता है,
ये ऑनलाइन स्कूल हमें नहीं भाता है,
अब यह कैसा मंजर दिखलाया,
छाया विश्व में कोविड का सायाI
किताबों से भरा बस्ता,
आज कहाँ
छिप गया है,
अब किताबें पेंसिल खोती नहीं,
इस पर भी हमें खुशी होती नहीं ,
कॉपी पर लाल स्याही दिखती नहीं,
अब आंखें ऑनलाइन में टिकती नहीं,
हाय! यह कैसा मंजर दिखलाया है,
विश्व में कोविड का साया छाया हैI
कक्षा में दौड़कर पहुंचना ,
सबसे पहले सीट पर बैठना,
कितना अच्छा लगता था,
और सिर्फ अपने दोस्त को बैठाना,
कोई दूसरा बैठे तो उसे झट से हटाना,
आज सब रह- रहकर याद आता है,
हाय! यह कैसा मंजर दिखलाया है,
विश्व में कोविड का साया छाया हैI
मिलकर नाचना गाना,
और खेलना कूदना ,
सब कितना याद आता है ,
फोन पर आंखें अब दुखती है,
स्कूल की घंटी अब नहीं सुनाई देती है,
दोस्तों के अठखेलियाँ अब न दिखाई देती है ,
हाय! यह कैसा मंजर दिखलाया है,
विश्व में कोविड का साया छाया हैI