मां
मां
मां पर क्या लिखूं, एक शब्द में दुनिया समाई है
दूर क्षितिज पर उभरने वाली ये एक रोशनाई है
त्याग, सेवा जैसे शब्दों ने मां से महानता पाई है
ये मां ही है जो हमें इस धरती पर लेकर आई है
पहली पाठशाला , पहला गुरू यों ही नहीं कहाई है
बचपन से ही संस्कार रूपी घुट्टी इसने हमें पिलाई है
इसकी महिमा तो स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने गाई है
कौशल्या, यशोदा, गौरा ने दी मां नाम को नई ऊंचाई है
कष्ट सहकर भी मुस्कुराने की अद्भुत क्षमता इसने पाई है
दुनिया भर का प्यार, दुलार, वात्सल्य ये अपने साथ लाई है
दुखों की चिलचिलाती धूप में आंचल की छांव लेकर आई है
जब जब ठोकर लगी तब तब सबको मां ही तो याद आई है
अब बदलते दौर में मां पर भारी पड़ने लगी "लुगाई" है
पत्नी के हाथों "ममता" की होने लगी अब जग हंसाई है
कुछ कलयुगी मांओं ने इस पवित्र नाम की लुटिया डुबाई है
प्रेमी के हाथों पति और बच्चों की हत्या तक इसने कराई है
सर्वस्व न्यौछावर करने वाली मां ने दर दर की ठोकरें खाई हैं
एक मां भारी पड़ने लगी इसलिए बेटों में होने लगी लड़ाई है
जिनको नौ महीने पेट में रखा उनके घरों में जगह नहीं पाई है
मूर्ख लोगों ने दौलत के लिए एक मां की ममता ठुकराई है
भाग्यशाली हैं वे बहुएं जिन्होंने मां के रूप में सास पाई है
पर विडंबना तो देखिए दोनों एक दूसरे की करती बुराई है
मां तो 'बरगद' है जिसकी गोद में ही सुख की नींद आई है
मां के आशीर्वाद से ही "हरि" ने आज एक नई ऊंचाई पाई है।