बेहिसाब हसरतें......
बेहिसाब हसरतें......
बेहिसाब हसरतों का बोझ लिये बस यूँ ही जीये जा रहे हैं।
हसरतों के दर्द को हँसी में मिला के सहे जा रहे हैं।
उम्मीदों की हवाओं में हसरतों का इत्र घुले जा रहे हैं।
बेहिसाब हसरतों को यूँ ही अश्कों से धुले जा रहे हैं।
अनकहे से जज़्बात अल्फाजों के मायने बदल रहे हैं।
किसी की हिक़ारतों के बावजूद कतरा कतरा संभल रहे हैं।
मुकम्मल ख़्वाबों की हसरतों में रात और दिन ढल रहे हैं।
कशमकश की आँधियों में हसीन से पल भी रो रहे हैं।
लम्हा-लम्हा जिंदगी का जिंदगी के लिये खो रहे हैं।
बेहिसाब हसरतें लेकर अरमानों की सुलगती चिता पर सो रहे हैं।