बेचैन दिल
बेचैन दिल
मेरा बेचैन दिल बहल जाता
तू तसव्वर में काश ढल जाता
रूख था पर्दे की ओट में वरना
आइना देखकर मचल जाता
तू ने देखा नहीं मुझे छूकर
दिल तेरा ख़ुद ब ख़ुद मचल जाता
दिल मेरा आशियाँ तुम्हारा है
काश तुम को पता ये चल जाता
बोझ ले जाता संग दिल का कुछ
अश्क़ गर आँख से निकल जाता
हम भी कुछ लुत्फ़े ज़िन्दगी लेते
काश अपना भी दाँव चल जाता
मेरी नज़रों को कुछ सुकूँ देकर
तेरे दीदार का ये पल जाता
आँच सीने की बुझ भी सकती थी
संग दिल काश वो पिघल जाता
यूँ चिढ़ा कर ऐ चाँद "दीपक" को
रोज़ छत से है क्यों निकल जाता।

