बेचारा 'बेसहारा' इंसान
बेचारा 'बेसहारा' इंसान
इंसान भी तों है भगवान का मज़दूर,
हालत कर देते है बदलने पर मजबूर,
दुआ करता है रहें रिश्ता हरदम मक़बूल
यूँ ही बिछड़ने के लिये रिश्ते बुनते देखा है क्या?
साथ निभाने के लिये हो जाना पड़ता है बहरा,
हो जाती है गलती बेचारा इंसान ही तो ठहरा,
कुछ तो रहता होगा मुश्किलों का पहरा,
यूँ ही लोग अपनों को भुलाते देखा हैं क्या ??
ज़िंदगी में कभी-धूँप तो कभी है छाँव
उलझनों के कई बड़े-बड़े हैं दाँव
कोई तों होता होगा आस्तीन का साँप
यूँ ही इंसान को इंसान से ड़सते देखा है क्या ?
अपने ही वाक़िफ़ होतें हैं कमज़ोरी से
स्वार्थ में सब-कुछ हड़प लेते हैं सीना-ज़ोरी से
दर्द हद से ज़्यादा बढ़ जाता होगा ‘देवल’
जर्जर हालत में भी घर छोड़ जाते देखा है क्या ?
