बदलता वक्त
बदलता वक्त
वक्त कभी एक सा नहीं रहता, बदलता रहता है
बेरहम, बेमुरव्वत है ये, इंसां को कुचलता रहता है
कभी सावन की बहार है तो कभी पतझड़ का जोर है
कभी गम का सागर है तो कभी खुशियों का शोर है
वक्त की मार से सम्राट युधिष्ठिर "कंक" बनकर रहे
अज्ञातवास में महारानी द्रोपदी ने कष्ट भयंकर सहे
जब वक्त खराब हो तो श्रीराम को भी वन जाना पड़ता है
इंसा तो क्या, वानर सेना का भी सहयोग मंगाना पड़ता है
जिसे सत्रह बार हराया, एक दिन उसी से हार गया
"जयचंद" बनकर पृथ्वीराज को वक्त ने बेमौत मार दिया
वक्त ने जोधाबाई को मुगल बादशाह की बेगम बना दिया
वक्त ने भारत को मुगलों और अंग्रेजों का गुलाम बना दिया
धर्म के नाम पर इस देश का बंटवारा हो गया
वोटों की खातिर "तुष्टीकरण" का जयकारा हो गया
वक्त खराब था तो देश "कमजोर" नेताओं के हाथ रहा
वक्त बदला तो "आतंक की फैक्ट्री" अब थर थर कांप रहा
वक्त जब साथ था तो "ईमानदारी" के प्रमाण पत्र बांट रहे थे
"कट्टर बेईमान" जेल जाने के खौफ में थर थर कांप रहे थे
"खानदानी राजकुमार" पगलाया सा सब जगह घूम रहा है
ऐसे "जोकरों" को बेरोजगार देख देश खुशी से झूम रहा है
ये वक्त का करिश्मा है कि देश विकास कर रहा है
भारत विश्व गुरू बनेगा, यह विश्वास लोगों में घर कर रहा है
लोग कहते हैं कि वक्त और वायु कभी ठहरते नहीं हैं
बुद्धिमान मनुष्य अच्छे वक्त में कभी "बौराते" नहीं है
वक्त यदि अनुकूल है तो बिगड़े काम बनने लगते हैं
और प्रतिकूल हो तो सभी लोग साथ छोड़ने लगते हैं
इंसा का क्या बड़ा है, ये तो वक्त ही बड़ा होता है
बुरे वक्त में जो मुस्कुराये, जमाना उसके कदमों में होता है।