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Rajni Sharma

Drama

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Rajni Sharma

Drama

बचपन की कशिदाकारी

बचपन की कशिदाकारी

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हो सके तो लौटा दो मुझे  

बचपन की कशिदाकारी 

वो अनूठा भोलापन 

कैसे कहाँ से ले आऊँ 


पर जब से 

जवानी की दहलीज पर 

दस्तक दी है 

बड़े उम्र के दरवाजों से 

लोगों को समझते-समझते 

यकीन ही सच से उठ चुका है 

चेहरे पे फिक्र मन में बद्दुआ 


ये है पर्दा 

जो आँखों पर पर पड़ा था 

विनती है उस खुदा से 

कि इस दिल को 

कांच सा ना बनाया होता 

तो बार-बार इन पर 

ये इल्जाम न आया होता 


इस जीवन रूपी कश्ती को 

सम्भालेने का सब्र दे मेरे मौला 

हो सके तो ले चल 

उस कब्रगाह में 

जहां सुकुन से 

चैन की नींद बसर हो सके मुझे।


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