मिली साहा

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4.7  

मिली साहा

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बचपन की चंचलता

बचपन की चंचलता

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समुद्र में उठती लहरों की तरह होती है बचपन की चंचलता,

जो मात्र कागज़ की कश्ती चला कर भी खुशियांँ ढूंँढ लाता।


ना धर्म ना जाति जाने गुलाब की कोमल पंखुड़ियों सा मन,

गुस्सा दिल में नहीं केवल जुबां पे रहता ऐसा होता बचपन।


अमीर गरीब की जाने ना परिभाषा शहद सी मीठी है भाषा,

चांँद तारों को बुलाए पास अपने ऐसी है मासूम अभिलाषा।


दो उंँगलियाँ जोड़कर ही, जोड़ ले बचपन दोस्ती का रिश्ता,

लड़ाई झगड़ा कितना भी करे, शिकन माथे पे नहीं दिखता।


बंधु रूठ जाए गर कोई पूर्ण प्रयास कर उसे मना ही लाता,

पद में आंँसू हैं पल में मुस्कान होठों पर ऐसा बचपन होता।


सपनों की ख़ूबसूरत दुनिया बचपन, आतुर मन करे विहार,

सच्चाई निश्छलता से भरा हुआ होता, बचपन वाला संसार।


बारिश की बूंदों को थामकर रखता हथेली पर ऐसे बचपन,

जैसी कोई बेशकीमती मोती देखकर प्रसन्न चित्त होता मन।


दुनिया की हर बुराई से दूर कितना पवित्र कोमल है बचपन,

जीवन की धूप छांँव की फिकर कहांँ, आह्लादित रहता मन।



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