बचपन कि वो बारिश
बचपन कि वो बारिश
आज जब देखती हूं
इन बारिश की बूंदों को
मन बचपन में पहुंच जाता
जो मन को बहुत था लुभाता
बचपन में संग बारिश के
मैं कितना खेला करती थी
मन ना भरा करता था
ऐसे भींगा करती थी
ना आज की फिक्र और
ना ही कल का डर
छपाक लगाते हुए हम
रहते थे बेहद निडर
इन बूंदों के गिरने से
मन छलक सा जाता था
इन बूंदों में भींग कर
मन आनंदित हो जाता था
आज जब कमरे के झरोखों से
देखती हूं इस बारिश को
राहत कम आफत लगती है
जो थी कभी लुभाती अब डराती है
पहले हम जिस बारिश में
कितनी छपाके लगाते थे
आज उसी बारिश में
कीड़े मकोड़े दिखते हैं
बचपन की बारिश में हमें
चिंता ना थी काम पर जाने की
आज देखो काम के साथ-साथ
चिंता रहती कपड़े सुखाने की
गर्मियों से तपती धरती पर
जब बारिश की बूंदें पड़ती है
तन मन शीतल हो जाता है
जब यह बूंदें बरसती है
आज इन बारिशों के संग
खेलने की फुर्सत कहां
अपने अपने कामों में हैं सब व्यस्त
नज़ारे लेने का वक्त कहां
कभी लगता है यूं
आवाज देकर ये बूंदें
मुझको बुला रही है
साथ खेलने को
फिर आवाज लगा रही है
काश! पुनः लौट आती
वो बचपन की बारिश
मन में उमंग भरकर
मिटा देती सारी तपिश