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Bikesh Kumar

Drama

2.5  

Bikesh Kumar

Drama

बचपन के लम्हे...

बचपन के लम्हे...

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उन बचपन के लम्हों को

फिर जीने को जी करता है,

उन मीठी यादों के जाम को

फिर पीने को जी करता है,


जी करता है माँ

फिर रातों को लोरी सुनाये,

अपने हाथों से मेरे गालों को थपथपाये,

सो जाऊँ जब उनकी गोद में सर रखकर,

प्यार से मेरे बालों को सहलाये,

माँ के गोद मे सर रखकर

सोने को जी करता है,

उन बचपन के लम्हों को

फिर जीने को जी करता है,


जी करता है पापा जब डांटें मुझे मेरी गलतियों पर,

तो डर से अपनी पलकें भिगाऊँ

फिर जब उठाले मुझे गोद मे प्यार से,

तो उनके साथ मैं भी मुस्कुराऊँ,

फिर से रोने और मुस्कुराने को जी करता है,

उन बचपन के लम्हों को

फिर जीने को जी करता है,


जी करता है अपनी बातों से सबको हँसाऊँ,

खिलौने टूट जाने पे फिर रूठ जाऊँ,

फिर माँ जब मनाये मुझे प्यार से,

थोड़े नखरें दिखा के मैं मान जाऊँ,

फिर से रूठने और मनाने को जी करता है,

उन बचपन के लम्हों को

फिर जीने को जी करता है,


काश...काश वो बचपन फिर लौट आता,

बिना फिक्र के मैं ज़िंदगी जी पाता,

मेरी गलतियों पे खुश होते थे सब,

और मुझे गलतियां करने मे मजा आता,

मगर बीत गया ज़िंदगी का

वो सबसे हसीन लम्हा,

अब तो बस उन लम्हों को

जीने का जी करता है...!


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