बैरागी दिल
बैरागी दिल
बुझा दो ये सारी रोशनियां, चेहरा कोई न पड़ पाए
न नीलाम हो हकीकतें, कहानी कोई न गढ़ पाए
जो ग़म उड़ाते हैं धुएं में, वे शायद ज़हीन होते हैं
दर्द ओ गुब्बार छुपाते हैं, दिल से कमसिन होते हैं
गुलिस्तां रौंदे जाते हैं, भड़काई जाती हैं चिंगारियां
दर्द उठते हैं यकायक, होती हैं नीलाम कमज़ोरियां
एक वे भी लम्हें होते थे, बोलतीं थी जब खामोशियां
बिन कहे पड़ पाते थे वे सारी,भूली बिसरी कहानियां
ए मेरे बैरागी दिल, यह किस आलम में तूने पनाह ली
यहां कटघरे हिस्से आते हैं, बिन किस्से, बिन गुनाह की.......
