बैलेंस शीट
बैलेंस शीट
स्कूल में कॉमर्स वर्ग की सबसे
होनहार छात्रा थी वो कभी
कौन सा एडजस्टमेंट करके
बैंलेस शीट को बराबर करना है
उसे बखूबी से आता था
आज भी वो बखूबी से एडजस्टमेंट करती है
सुबह नींद को हरा घड़ी के काटो से तेज दौड़ती है
रसोई में उफनते दूध को भगौने से बाहर आने न देकर
सबके पसंद का तरह- तरह का खाना
वो सबके उठने से पहले बना तैयार कर देती है
घर के कोनों में छिपी बीमारियों को मार कर
अपनी छोटी- मोटी ख्वाहिशों की तरह उसे
घर की दहलीज के बाहर कर देती है
कभी अपने कोमल हाथों से कठोर हथौड़ा मार कर
ठोक देती है कील हटाकर अपनी डिग्रियों को
परिवार जनो की मुस्कुराती खिलखिलाती तस्वीरों को
उनकी स्थान पर टांक देती है
जो कभी चुटकियों में भाप लेती थी
कंपनी की आर्थिक स्थिति को देती थी सुझाव लाभ वृद्धि का
अब वो बजट बनाती है अपने घर का लेकिन
ख्वाहिशों की स्याही के आगे पैसों का कागज
हर बार छोटा पड़ जाता है वो भूल कर नयी चूड़ियाँ
अपने बच्चों के नए कपड़ों को अलमारी में सजा देती है
अब उसके हाथ से चिपका रहने वाला कैलकुलेटर
अब उसे झंझट लेने लगा शिशु का नर्म स्पर्श
उसके हाथों को सुहाने लगा
हां अब वो खुद के सपनों को भूल कर
अपने बच्चों के सपनों को संवारना चाहती है
अब वो होनहार छात्रा अपने सपनों का समायोजन कर
अपने घर की बैंलेस शीट बराबर कर देती है...