Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Shubhra Varshney

Abstract

4  

Shubhra Varshney

Abstract

बात फुरसत की

बात फुरसत की

1 min
24



ए भागते वक्त अपनी कुछ मेहरबानियां,

मेरी जिंदगानी के नाम कर दे।

बस इस एहतराम की ख्वाहिश है,

तेरी झोली से कुछ पल फुर्सत के चुरा पाऊं।

माना ना रुकेगा ना ही थमेगा तू,

तेरी फितरत ही चलते जाना है।

जरा घड़ी की सुइयों को ढीला कर,

जो पल दो पल ठहर जाऊं।

वह सुख की दहलीज पर जाकर,

थककर रात मेरी सो गई।

तू सवेरा फुर्सत का दे दे,

इतराती रोशनी में नहा जाऊं।

माना हम मेहमान दर्द के हैं,

बिना मुखालफत सहेंगे हर सितम तेरे।

जो संघर्षों की गर्द मुझ पर है,

तू छू दे जो फुर्सत से मैं पल भर में निखर जाऊं।

छूटा जो बचपन का वह अल्हड़पन,

जवानी ने दौड़ लगाई।

मुझे फुर्सत की रवानी दे दे,

थोड़ा खुद से भी जो मिल पाऊं।

माना तुझे फुर्सत ही नहीं,

जो ढूंढे मेरे फुर्सत के घरोंदे को।

चंद आशियाने खुशियों के दे दे,

गमों के मकान खाली कर जाऊं।

वीरान होती इस पत्थर बस्ती में,

मेरे दिल के जज्बात रखना कायम।

हो रुह की इंसानियत से दोस्ती,

तुझसे यह हुनर में सीख जाऊं।

फिर से लाद देना ढेर जिम्मेदारी का,

एक पल फुर्सत मेरे नाम कर दे।

समेट लूं रिश्तो की डोरी

मैं खुद से आंख मिला पाऊं।

   



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract