बारिश
बारिश
मानसून का ये समां
यूँ तो ख़ुशियों से भरा होता है,
रिमझिम -रिमझिम बरसती हुई,
बूंदों का स्पर्श, इश्क़ लिखता है।
काश ! बारिश की बूंदों की तरह
तुम भी ज़मीं पर, उतर पड़ो।
और सीप की मानिंद, हम भी तुम्हें
यूँ ही, खुद में महफ़ूज़ कर ले।
आसमान से टपकती बूँदें
तुम्हारी अलसाई आँखों को,
नाकाम सी कोशिश करती है
खोलने की, और एक बन्द आँख से,
तुम मुस्कुराने का नाटक करती हो।
वैसे, जानती हो ?
बारिश में तुम्हारे साथ<
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एक कप चाय, हाँ एक कप
चाय और
आसमान से पायल छनकाती
आती बूँदों की सरगम ,
जब तुम्हारे रूखसारों को छू
गालों पर धीरे धीरे मचलती है
ज़िंदगी को मेरी आसान कर देती है।
होठों पे जब मुस्कुराते है भीगे से
शबनमी मोती ,
पतझड़ के जैसे सूखे मेरे जीवन में ,
बहारों का मौसम छा जाता है।
और तुम्हारी बड़ी -बड़ी आँखें
बड़े आराम से ,
मेरी जिन्दगी की हर किताब को ,
क़ुरान कर देती हैं।
हर लम्हें को मेरे, जैसे
आज़ान कर देती है ।