बाल मजदूरी
बाल मजदूरी
किसी को फूल बेचते देखा,
किसी को पालिश करते देखा,
मैंने नन्हे बच्चों को मजदूरी करते देखा।
उसका मन भी खेलने को करता होगा,
वो भी दोस्तों के बिना तड़पता होगा,
उसके लिए खेल का मैदान नहीं,
उसके जिस्म में जान नहीं,
करवाते हैं जिससे मजदूरी दिनभर क्या वो बच्चा इंसान नहीं।
अफसोस, देखकर भी उसको कोई परेशान नहीं है,
क्या वो बच्चा देश की शान नहीं है, ।
मत रोंदो बचपन किसी का,
मानव जन्म इतना आसान नहीं।
पढ़ाने की उम्र उनको पढ़ा नहीं पाये,
छोटी सी उम्र में देते हैं उनका वचपन दाम लगाये,
रह जाता है बेचारा अनपढ़
करता रहता मजदूरी,
समझ नहीं पाया सुदर्शन,
ऐसी कौन सी थी मजबूरी,
चन्द सिक्कों की खातिर
लगा दिया इनका जीवन दाम
क्या यह बच्चे नहीं इंसान।
ढाबे में भी जब हम उनसे खाना खाते,
छोटू कह कह उनको खूब दौड़ाते,
मेज साफ करके जब वो रखता खाने की थाली,
गिर जाए तनिक भी उससे
देते हैं बिन सोचे समझे गाली,
कभी सोचा गाली देना शान नहीं है,
वो बच्चा भी क्या इंसान नहीं है।
बचपन जिनका खो गया मजदूरी में वो मासूम क्या बताएगा,
जीवन जिसका गुजर गया सड़क पे वो बचपन कहा़ से लायेगा,
क्या किसी नागरिक का
उनकी तरफ ध्यान नही़ है
क्या देश का हर बच्चा इंसान नहीं है।
कहे सुदर्शन बाल श्रम रोको
देकर तरूंत ध्यान,
बाल मजदूरी तो एक जुर्म है
कहता हमारा संविधान,
न छीनो बचपन बच्चो का
बच्चे हैं देश की शान,
हंस्सें, खेलें खूब खूशी से
बच्चे हैं हमारी जान।