बाजार चले हम
बाजार चले हम
एक बार हम निकल पड़े,
जाने को बाजार,
पांच रुपैया देने का,
अम्मा को हुआ विचार।।
टॉफी देख के नुक्कड़ पर ही,
मन अपना ललचाया,
एक रुपैया देकर हमने,
मीठी टॉफी को चबाया।।
चार रुपैया बचा देख फिर,
मन में किया विचार,
अरे अभी तो दूर जरा है,
जाना जिस बाजार।।
आगे फिर जब गली में पहुचे,
लट्टू पर दिल आया,
एक रुपैया देकर हमने ,
लट्टू बड़ा घुमाया।
तीन रुपैया बचा देख फिर,
मन में किया विचार,
अरे अभी तो दूर जरा है,
जाना जिस बाजार।।
अभी सड़क पर ही पहुचे,
कंचों की रंगत छाई,
एक रुपे के कंचे लेकर,
हमनें जेबें सहलाई।।
दो रुपैया बचा देख फिर,
मन मे किया विचार,
अरे अभी तो दूर जरा है,
जाना जिस बाजार।।
कुछ ही कदम हम अभी बढ़े,
गुब्बारे नजर में आये,
एक रुपैया दे हमने,
गुब्बारे भी लहराये।।
एक रुपैया बचा देख फिर,
मन मे किया विचार,
अरे अभी तो दूर जरा है,
जाना जिस बाजार।।
कुल्फी की घंटी सुनकर,
मन भागा उसकी ओर,
एक रुपे की कुल्फी से,
मन नाचा बन के मोर।।
टूटे फिर बाजार के सपने,
कुछ न बचा था पास में अपने,
अपने सारे पैसे निपटे,
ठुमक ठुमक हम घर को लपके।।
