बसन्त
बसन्त
फिर बसन्त की आहट आई
हर जगह फ्योंली मुस्काई,
रस्ता, खेत हो चाहे जंगल,
पीले रंग की चादर छाई।
नन्हे फूलों से लदकद अकेसिया,
ने भी अपनी डाल झुकाई।
धीरे धीरे संग हवा के,
उसने अपनी महक उड़ाई।
लाल बुरांश भी खिल बैठा फिर,
लाली उसने भी बिखराई।
बिन बोये रंगीं फूलों ने,
जंगल मे रंगत फैलाई।
नन्हीं सुंदर चिड़ियों ने भी,
डाली डाली फिर चहकाई।
छोटे बड़े सभी वृक्षों ने,
नई कोपलें फिर से पाई।
हर्षित हुए धरा और गगन,
गरमाहट सूरज ने बधाई।
धरती के कण कण में जैसे,
एक नई स्फूर्ति सी छाई।
नया जोश है नया कलेवर,
हर प्राणी के मन को भाया
सीखें हम भी कुछ प्रकृति से,
कि, कैसे हर स्थिति अपनाएं।
झेल सभी मौसम जीवन के,
हम नव बसंत जीवन में लाएं।
नव बसंत यूँ ही लौटेगा।
हम भी सुपथ पर बढ़ते जाएं।
फ्योंली सा हम भी मुस्काये,
और बुराँश की रंगत पाएं।
