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Poonam Danu Pundir

Tragedy

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Poonam Danu Pundir

Tragedy

बेटी को भी जीने दो

बेटी को भी जीने दो

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मैं तितली हूँ मैं फूल हूँ,

तुम क्यों समझे कि शूल हूँ?


मुझमें पलते मानव के वंश,

झेलूं मै लिंगभेद का दंश।


मै हूँ संगीत और सरगम,

सह लूँ मैं भेदभाव का गम।


मै हूँ प्रकाश हर लूं मै तम,

फिर क्यों केवल बेटे का भ्रम?


बेटा है जब कुल का दीपक,

मैं भी तो कुल की ज्योति हूँ।


कष्ट तुम्हें जब होता है,

मन ही मन मैं भी रोती हूँ।


तारीफ हो जब भी बेटे की,

मैं मन कलुषित नहीं करती हूँ।


खुश रखने को परिवार मेरा,

समझौते सीख ही लेती हूं।


बेटा है वंशबेल का फल,

तो मैं भी नन्हा फूल हूँ।


मुझसे समाज भी चलता है,

तुम मत समझो कि धूल हूँ।


एक बेटे के फल की खातिर,

सौ बलि हमारी अर्पण है।


मानव समाज का रूप है क्या?

मेरी स्थिति ही इसका दर्पण है।


मत मारो मुझको पढ़ने ,

मुझको भी आगे बढ़ने दो।


मुझे जीने दो मुझे ज्ञान,

मुझे विद्या का वरदान दो।





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