ऐसे महिला दिवस मनना
ऐसे महिला दिवस मनना
महिला दिवस मानना हो तो,
नाममात्र का नहीं मनाना।
बेटी भी देखें दुनिया को,
बस बेटे को ही नहीं दिखाना।
भाग्य नहीं नारी का रोना,
आज जरा तुम उसे हँसाना।
अर्पण करे निःस्वार्थ तन-मन,
तुम भी उसका मान बढ़ाना,
मीले उसे भी न्याय यहां पर ,
निर्भया की माँ सा नहीं रुलाना।
घूम सके वो भी स्वतंत्त्र हो,
तुम उसको विश्वास दिलाना।
बेटी है और मां भी है वह,
उसे गॉसिप का हिस्सा नहीं बनाना।
सबला है, आधी दुनिया है,
अबला उसको नहीं समझना।
मिले बराबर का हक उसको,
नया एक संविधान रचाना।
कोरी बातों से ही केवल,
महिला दिवस तुम नहीं बिताना।
देना उसको कहने का हक,
तुम थोड़ा उसको भी सुनना।
वो जीवित है ,वो है मानव
वस्तु उसे तुम नहीं समझना।
होकर सफल उड़े अगर वो,
उसके पंखों को न कुतरना।
रूढ़िवादिता की बेड़ी में,
उसके पग तुम नहीं जकड़ना।
दे सकते सम्मान और हक,
तब ही महिला दिवस मनाना।
बस यूं ही एक रस्म निभाने,
तुम फिर ये गाना ना गाना।
महिला दिवस मनना हो तो,
नाममात्र का नहीं मनाना।
