जन जन का गणतंत्र
जन जन का गणतंत्र
आया पुनः दिवस वह सुंदर,
जब अपना गणतंत्र बना,
संविधान इठलाया खुद पर,
और तिरंगा खूब तना,
बात हुई फिर बराबरी की,
लिंग भेद को किया परे,
जाती धर्म का भेद छोड़,
ऊपर उठने की बात करें,
हां अधिकार मिले हैं हमको,
पर कर्तव्यों को भी छू लें,
दायित्वों को समझें हम,
और संविधान को ना भूलें।
खून बहा है बहुत कीमती,
इस गणतंत्र को पाने को,
सदियों हुआ संघर्ष घोर,
इस स्वराज को लाने को।
उत्सव आज मानना लेकिन,
करना विचार तुम क्षणभर को,
याद उन्हें करना जरूर,
जो न कभी लौटे घर को।
कोटि कोटि नमन है उनको,
उनपर हमको नाज है,
अपने रक्त की बूंदों से,
लिख गये हमारा आज है।
नियम नीति सब जन सीखें ,
संविधान का मंत्र है,
श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माता है यह,
जन जन का गणतंत्र है।
