बाबुल
बाबुल
बाबुल मैं पराई क्यों हूं
तेरी परी हूं , तेरे आंगन में पली हूं
फिर भी मैं पराई क्यों हूं,
तेरे दर्द से तड़पता है मन मेरा
तेरे माथे की शिकन मिटाने आई हूं
फिर भी मैं पराई क्यों हूं ,
तेरे आंगन की रंगोली हूं
होली में रंगों से खेली हूं
फिर भी मैं पराई क्यों हूं,
तुम ने बनाया है घर को
उस घर को सजाया है मैंने
फिर भी बाबुल उस घर में मैं पराई क्यों हूं,