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kashmala sheikh

Fantasy Romance

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kashmala sheikh

Fantasy Romance

अज़ल-ए-इश्क़

अज़ल-ए-इश्क़

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कुछ इस तरह से मैंने अनचाही नींदें बहलाई है रात भर,

कहानी अज़ल-ए-इश्क़ की चाँद को सुनाई है रात भर।


तसव्वुर तुम्हारा ख्वाबों में, फिर ताबीर में नाम तुम्हारा,

क्या खबर के ज़िक्र पर तुम्हारे वो इतराई है रात भर।


हँसना-गाना और तुम, वो रतजगा भी कमाल का रहा,

रो-रो कर थके फिर, ईद जुदाई की मनाई है रात भर।


एहसान न जताओ कि पढ़ते हो कसीदे मेरे हुस्न के तुम,

हमने भी तफ़्सीर तुम्हारी हवाओं को बताई है रात भर।


नाराज़ हो तो नाराज़गी का सबब भी ठीक रखो जनाब,

खातिर तुम्हारे गलतियाँ खुद ही की गिनाई है रात भर।


शराब पर जो नारे थे हराम और हलाल के सब धरे रहे,

न जाने कब उसने *कश* को कश पिलाई है रात भर।।


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