औरत
औरत
हौसलों के साथ बढ़ रही है वो,
कंधे से कंधा मिला चल रही है वो।।
बेटी, बहन, पत्नी और माँ,
ना जाने कितने रूपों में ढल रही है वो।।
रूढ़ियों, रीतियों की जंजीरों में जकड़ी हुई,
हर फर्ज को निभाती ही जा रही है वो।।
टूटती-जुड़ती उम्मीदों के साथ,
अन्तर्द्वन्द से लड़ती ही जा रही है वो।।
बढ़ाती है कदम-दर-कदम इस उम्मीद से,
सहयोग मिले तो बेहतर मुकाम बना रही है ।।
ना जाने क्या खो देने के डर से,
गलतियाँ करने से डरती ही जा रही है वो।।
सब कुछ सुलझाने की जिद में,
खोते सुकून को ढूँढती ही जा रही है वो।।
हर मोड़ पर नई चुनौतियों के साथ,
जीवन पथ पर बढ़ती ही जा रही है वो।।