सुन्दरता धरा की
सुन्दरता धरा की
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कितनी खूबसूरत है धरा,
बयां करना मुश्किल है शब्दों में।
कहीं हिमालय सजता शीश पर,
चरणों को पखारता सागर है।
कल-कल बहती नदियाँ जैसे,
गीत पंछियों संग गुनगुनाती हैं।
सर-सराहट पेड़-पौधों की जैसे,
वायु मधुर संगीत सुनाती है।
रंग-बिरंगे फूलों पर,
तितलियाँ भी इठलाती हैं।
मन में मीठी मनुहार लिए,
भौरे भी गुंजन करते हैं।
सुन्दरता धरा की गगन भी,
ऊपर से निहारा करता है।
जब बादलों की ओट से,
चाँद-तारे निकलते हैं।