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Vidya Sangwan

Tragedy

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Vidya Sangwan

Tragedy

औरत हूँ मैं

औरत हूँ मैं

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चुप रहूँ सहूँ मैं 

बोलूं तो बदतमीज हूं मैं

औरत हूं मैं।

घूंघट करूं मैं, सिर झुकाऊँ मैं 


देखे कोई और तो ,बदचलन हूँ मैं

औरत हूँ मैं ।

पराये घर की मैं, पराये घर से हूँ मैं 

घर से.....बेघर हूँ मैं

औरत हूँ मैं।

पढ़ी- लिखी मैं ,समझदार मैं 

पेशे से .....गृहिणी हूँ मैं 

औरत हूँ मैं। 

बेटी मैं,प त्नी मैं 

बात हक की तो,

सिर्फ एक औरत हूँ मैं 

औरत हूँ मैं। ।



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