और अब कहने को क्या है
और अब कहने को क्या है
तुम आये थे मेरे दिल के करीब अपने बनकर,
रिश्ते जोड़े, बातें जोड़ी और सारे गम को फ़ना किया,
हँसना सिखाकर तुमने ही रोने का भी हुनर दिया
अब भला इससे अधिक सहने को क्या है,
आखिर और अब कहने को क्या है।
और अब कहने को क्या है।।
ये सारे मेरे सवाल है तुझसे ये कोई इल्ज़ाम नहीं,
तेरे दर्द से बढ़कर मुझको मेंरा कोई अंजाम नहीं
ये आने जाने वाले लोग न आये तो अच्छा है,
हमें हंसने की तालीम न दे गम दे जाएँ अच्छा है।
घर तो तोड़ दिया और अब रहने को क्या है
लफ्ज़ कम है नजर डरी और अब कहने को क्या है।।
समंदर के किनारे रेत का कोई घर बनाना हो
वो घर मिट गए जब कभी लहरों का आना हो
हमें जब छोड़कर जाना ही तो कह दिए होते,
या फिर छोड़ने से पहले कोई अच्छा बहाना हो।
इतने दर्द तो सह लिए हैं और अब सहने को क्या है,
और अब कहने को क्या है।
