अटका है
अटका है
मेरी
प्रियतमा !
कहना चाहता हूँ
आज तुम्हें
अपने हृदय की बात।
सुनो !
आज भी
मुझे याद है
पहला करवाचौथ।
जब हम
यात्रा के मध्य थे,
स्टेशन पर
रेल से उतर कर
चाँद को
अर्ध्य दिया था तुमने !
वो सादगी भरा
मोहक रूप
पहले करवाचौथ का
आज भी
मेरी आँखों में
वैसा ही बसा है !
मेरा हृदय
सच कहूँ तो
आज भी वहीं
करवाचौथ के
चाँद के साथ।
तुम्हारी
उसी भोली सी
सादगी पर अटका
स्टेशन पर
अब भी वहीं खड़ा है !
सुन
रही हो न
तुम मेरी प्रियतमा !

