वृद्धावस्था का सौंदर्य
वृद्धावस्था का सौंदर्य


अपनी
जीवन पुस्तक के
पढ़ चुके हो
दो अध्याय,
तीसरा भी
आधे से अधिक
पढ़ डाला है
हो गये हो
अपने कर्तव्यों से मुक्त !
तो
किसलिए
उलझते हो
सांसारिक मोह में
फिर से ?
करने दो संघर्ष
अपने बच्चों को
अपने बच्चों के साथ,
वक़्त के थपेड़ों से
दो-चार होते
समझेंगे जीना
तुम्हारी तरह से !
हो जाओ
मुक्त उनसे,
सीखना
तो तुम्हें है अब
अपने मन से
अपने लिये
नये सपने बुनना
पूरा करने क
े लिए
हौसलों के साथ जीना !
पहले भी किया है
आज भी कर सकते हो
चुन कर
नयी राह
अपने साथी के साथ
हाथ में हाथ डाल
बतियाते-गपियाते
आराम से
उस पर
चल सकते हो !
जीने दो
उन्हें भी जिंदगी
अपने मन-ढंग से,
स्वयं भी
जियो वो साथ
बात, उमंग और बरसात
जिसे साथ रह कर भी
जी नहीं पाये !
देखना
जब भी
करोगे ऐसा
वृद्धावस्था का सौंदर्य
हौसलों की उड़ान देकर
कितना सुख
देकर जायेगा।