STORYMIRROR

Bharti Bourai

Abstract

2  

Bharti Bourai

Abstract

वृद्धावस्था का सौंदर्य

वृद्धावस्था का सौंदर्य

1 min
340


अपनी 

जीवन पुस्तक के 

पढ़ चुके हो 

दो अध्याय, 

तीसरा भी 

आधे से अधिक 

पढ़ डाला है

हो गये हो 

अपने कर्तव्यों से मुक्त !


तो 

किसलिए 

उलझते हो 

सांसारिक मोह में 

फिर से ?


करने दो संघर्ष 

अपने बच्चों को 

अपने बच्चों के साथ,

वक़्त के थपेड़ों से 

दो-चार होते

समझेंगे जीना 

तुम्हारी तरह से !


हो जाओ 

मुक्त उनसे,

सीखना 

तो तुम्हें है अब 

अपने मन से 

अपने लिये

नये सपने बुनना

पूरा करने क

े लिए 

हौसलों के साथ जीना !


पहले भी किया है 

आज भी कर सकते हो 

चुन कर 

नयी राह 

अपने साथी के साथ 

हाथ में हाथ डाल 

बतियाते-गपियाते 

आराम से 

उस पर 

चल सकते हो !


जीने दो 

उन्हें भी जिंदगी

अपने मन-ढंग से, 

स्वयं भी 

जियो वो साथ 

बात, उमंग और बरसात 

जिसे साथ रह कर भी 

जी नहीं पाये !


देखना 

जब भी 

करोगे ऐसा 

वृद्धावस्था का सौंदर्य 

हौसलों की उड़ान देकर 

कितना सुख 

देकर जायेगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract