काजल की डिब्बी
काजल की डिब्बी
बुरी
नजर न लगे
किसी की भी
माँ लगाया करती थी
दिठौना कान के पीछे
या माथे के बायीं ओर
नियम से छोटे भाई के,
साथ-साथ बताती जाती,
बुरी नजर
छोटे बच्चे को
कैसे नुकसान
पहुँचाती है
और काजल
उस बुरी नजर को
बच्चे तक
आने से रोकता है,
तो मैं पूछा करती
तुमने मुझे भी
ऐसे ही लगाया
छोटे में बचाने को काजल ?
तो माँ प्यार से
सिर पर हाथ फेरते हुए कहती
और नहीं तो क्या...?
अपनी चिरैया को
काजल न लगाती तो
ईश्वर से क्या कहती ?
और सुन !
दिठौना ही नहीं
तेरी इन बड़ी-बड़ी
मछली जैसी
प्यारी आँखों में
रोज काजल भी
लगाती थी,
तभी तो
मेरी सोना !
तुम्हारी आँखें
इतनी सुंदर हैं...!
जब तुम भी
मेरी तरह
माँ बनोगी
तब तुम भी
अपने बच्चों को
ऐसे ही दिठौना
और आँखों में
काजल लगाना !
माँ की ये परंपरा
मेरे साथ भी
मेरे बच्चों के लिए चली,
और आगे भी
बच्चों के बच्चों के
साथ भी चलेगी !
आज माँ नहीं
पर उनकी वो
काजल की डिब्बी
मेरे पास है
जो
नानी की
थाती-परंपरा स्वरूप
मैं अपनी
चिरैया और
उनकी नातिन को
सौंपूँगी
जब वो
माँ बनेगी
नानी की
काजल की डिब्बी
सहेजेगी आगे की
पीढ़ी के लिए।
