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ashok kumar bhatnagar

Tragedy

4.5  

ashok kumar bhatnagar

Tragedy

अस्सी साल के बृद्ध की ख्वाहिश है एक आदर्श मौत

अस्सी साल के बृद्ध की ख्वाहिश है एक आदर्श मौत

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 ज़िन्दगी का सफ़र है यह एक बार ही मिलने वाला,

हर युवा आदमी इसे जीने की ख्वाहिश रखता है ।

पर बृद्धावस्था में आकर बदल जाते हैं नज़रिए,

और शांति की राह पर होती है चर्चा हर मुकाम पर।


अस्सी साल के बृद्ध की ख्वाहिश है एक आदर्श मौत,

जहां सब जिम्मेदारियों का होता है समापन |

अन्तिम संस्कारों के साथ सोयेंगे वो आराम से,

जैसे एक अच्छे काम के बाद मिलती है सुनामी।


अश्कों के लेकर धारे, हम कूंच कर रहे हैं शहर से तुम्हारे,

आये थे गावं से शहर में कुछ खुशी पाने के लिए |

 अपना गम मिटाने के लिए पर गम ना मिटा, दर्द और बढ़ा लिया ,

अब खुदा से दुआ कर, एक शांत मौत के लिए हमारी।


खो गए हैं हम , इन घने अँधियारो में ,

अब चाहते हैं बस, एक शांत मौत हो हमारी।

उठती हैं आहटें, तन्हा रातों में रोज़ाना,

धुँधला हो गया है मन, बिखरे हुए ख़यालों में।


गमों को भुलाने, हंसी को पाने आए थे,

पर दर्द और बढ़ा लिया, हमें विचलित कर दिया।

बस अब एक शांत मौत की कामना हे हमारी ,

जहां गमों का अंत हो और दुःखो का समापन हो।


बीते दिनों की यादें, दिल में छुपी चुभती हुई ,

राह में आँधियों के साथ, हम आगे बढ़ते रहे बेरहमी से।

मन के आस पास घूमते, बेखुदी में बस जाते हैं हम,

पर इस तरह जीने के लिए, अब काम कुछ बचा नहीं |


खुशी की राहों में, हमने खो दिया है खुद को,

अब खोजते हैं बस, एक

शांत मौत के लिए |

अस्थित्व की इस उड़ान में, हम बंधे रह गए हैं,

काटती है ज़िंदगी और कुछ टाल नहीं सकते हम।


आंखों से टपकते आंसू, जीवन की कठिनाइयों को छुपाते,

क्या समझे दुनिया इन गमों को, जो दिल में बहते जाते।

बस ये है वो तन्हाई, जो हमें चीर कर रही हैं,

खो गए खुद इस भीड़ में, हर पल अजनबी हो रहे हैं |


चाहते थे खुश रहना हम, प्यार से जीना है,

पर दर्दों ने हमें गांठ बांधी, जीवन की मरम्मत सीना है।

अब बस एक दुआ है बाकी, खुदा से यही गुहार है,

एक शांत मौत के लिए हमारी दरकार हैं | 


यह जिंदगी तो एक सफ़र है, हर रोज़ नया मोड़ लेती,

कभी हंसती है, कभी रुलाती है, हर लम्हा यह बदलती।

पर हम चलते रहे, मजबूती से, बाधाओं से टकराते,

बस एक शांत मौत की आस है, जिसमें खुद को पाते।


इश्क़ ने रच दिया है, हमारी ये दर्दभरी कविता,

जो लिखी है रूहों की, अब सोचते हैं केवल मौत की विचिता।

इस जहां में चहुँओर कुछ नहीं बचा हमारा,

अब चाहते हैं बस, एक शांत मौत के लिए हमारी।


हे शहर के राही, कब तक यूँ रहेंगे अकेले,

अश्कों के सहारे, जीने का रास्ता ढ़ूंढ़ते रहेंगे?

दिल में दर्द लिए हम, तेरे शहर आए थे हम,

सोचते थे सुखी होंगे, खुशी के सपने लिए हम।


हे शहर के राही, थम जाओ ये सिसकी सुनो,

अश्कों के धारे रुक जाएं, इस बहुतेरे तन से।

हम ने खो दिया है खुद को, खुशियों के लिए तुम्हारे,

अब हमे जाना हैं एक नये जीवन की तरफ़।


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