असमंजस
असमंजस
किस तरफ ज़िन्दगी, जा रही धकेल,
बड़ी दर्द देती है, नथुनों में पड़ी नकेल,
अजीब उमड़ती हैं, ख्वाहिशें कभी कभी,
अधूरे रह जाते, बीच सफर में कुछ खेल,
शिकायत नहीं, किसी से किसी को क्यों,
अब कौन बाकी है, जो ना रहा दंश ये झेल,
उड़ते थे शौक बेहिसाब, हवाओं की शय में,
अब पंखहीन कैदी को, बिन जुर्म मिल गयी जेल,
फिर भी नदारद है, शिकन की दरारें ललाट से,
समझाते हुए खुद को, कि ज़िन्दगी धक्कम-रेल,
मिला ले ज़हन में, उठते-बैठे भावों को,
छिड़क नींबू चट कर जा, जज़्बातों की भेल,
अब हाथ में क्या है और क्या मिलेगा आगे,
भटक ना अंध भक्ति में, काम ना आएगी ब्रेल,
जीवन के कटु सत्य को, आत्मसात करके,
भर बाल्टी शिख तक, दे खुद पर उड़ेल,
अब ठौर कहाँ जमेगा, ओ मद में चूर मस्ताने,
तू बन फिर खानाबदोश, लगा उम्मीदों की ठेल,