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Abhilasha Chauhan

Tragedy

3  

Abhilasha Chauhan

Tragedy

असीम वेदना

असीम वेदना

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असीम वेदना से पीड़ित ये नारी,

परित्यक्ता, विधवा, दुष्कर्म की मारी।

बिना किसी अपराध झेलती दंड,

समाज भी छुड़ा लेता अपना पिंड।

सीता, शंकुतला, यशोधरा की व्यथा,

किसी ने कहां सुनी इनकी कथा।

भोगती रही दंश असीम वेदना का,

अकेलेपन और परित्यक्ता होने का।

स्थितियां कभी कहां बदलती हैं!!


आज भी नारियां ये दंश झेलती है।

वैधव्य भोगती हो जो अबला!

परिवार मानता है उसे बला!!

मनहूस कहकर जाती दुत्कारी,

पीती आँसू वह वेदना की मारी।

दुष्कर्म की मारी, समाज से हारी,

जीवन हो जाता उसके लिए भारी।


मरती हैं ये रोज थोड़ा-थोड़ा,

समाज ने इनसे अपना नाता तोड़ा।

भोगती निरपराध दंड अपराध का,

बन जाती जो नासूर उस वेदना का।

कौन समझता है भला इनका द्वंद्व

क्योंकि लोग हैं दृष्टिहीन और मंतिमंद।।


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