अर्जी।
अर्जी।
चल पड़ा प्रभु ! अंजानी डगर पर अपनी शरण में लीजिए।
भटक सकते हैं राह पर अपनी, बस हाथ पकड़ अब लीजिए।।
गर पकड़ा हाथ तो छोड़ मत देना, अपने चरणों में रख लीजिए।
सदबुद्धि पर चल पड़े हम, ऐसा वरद हस्त रख दीजिए ।।
आसरा हो चरण कमलों का, यादों में अपने रख लीजिए ।
हम अज्ञानी जन्म-जन्म के, कृपा दृष्टि कर दीजिए ।।
याद तुम्हारी कभी न भूलूं, विवेक दृष्टि खोल दीजिए।
आप तो समरथ है, अंतर्यामी, सेवा -भक्ति का वर दीजिए।।
स्वार्थी हम अपना हित जाने, निष्काम ता का भाव भर दीजिए।
यही अर्जी है "नीरज" की प्रभु जी, शरण -चरण रज दीजिए।।