अपनी जिंदगी
अपनी जिंदगी
मेरे मन से मै मायूस बन रहा हूंँ,
सुनसान रातों में भटक रहा हूंँ,
तेरे विरह की आग में जलकर,
अपनी जिंदगी मै बिता रहा हूंँ।
रात विरानी महसूस कर रहा हूंँ,
सितारों के संग बातें कर रहा हूंँ,
चांद में तेरा सुंदर चेहरा देखकर,
अपनी जिंदगी मै बिता रहा हूंँ।
घर की दीवारों में कैद हो रहा हूंँ,
लब से तेरा नाम गुनगुना रहा हूंँ,
रातभर तेरे ख्वाबों को देखकर,
अपनी जिंदगी मै बिता रहा हूंँ।
अपने दिल को मै समझा रहा हूंँ,
तेरी मधुर यादों से तड़प रहा हूं,
ये तन्हाईयांँ की राह पर "मुरली",
अपनी जिंदगी मै बिता रहा हूंँ।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ)

