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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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अपने आप में बेमिसाल

अपने आप में बेमिसाल

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क्या दूँ अपना परिचय मैं ?

कुछ खास तो नहीं हूँ

कुछ खास नहीं था बताने को

इसीलिए खामोश थी।


अब जब आपने पूछ ही लिया

क्या हूँ में तो बता दूं 

बस इतना ही।


यूँ तो आपकी ही तरह

पूरी एक किताब हूँ मैं

मगर जो ना पढ़ सका कोई

वो अधूरा ख्वाब हूँ मैं।


सिर पे खुद के

उठाये रिश्तों की

वो गठरी हूँ, खोल ना सका

जिसे कोई, जोर से कसी

वो गाँठ हूँ।


यूँ तो मुक्कमल

शबाब हूँ

माँ, बहन, बेटी,

पत्नी हूँ

मगर खुद के लिए

कहीं अधूरा

तो कहीं पूरा असबाब हूँ मैं।


पढ़ने को तो

रोज ही पढ़ते है सब मुझे

फिर भी ना पढ़ सका

जिसे कोई

वो अनपढ़ी खुली किताब हूँ मैं।


कुछ छुपा नहीं

कुछ छुपाने

जैसा नहीं

ज़िंदगी की हकीकत से अंजान 

सपनों में 

बस खुद को ढूंढ़ती

एक आम सी नारी हूँ मैं। 


पल-पल हंसती 

सब कुछ लिखती

जी भर जीती

ज़िंदगी से ना कभी हारी हूँ मैं 

अपने आप में बेमिसाल हूं मैं।


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