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Vaidehi Singh

Classics

4  

Vaidehi Singh

Classics

अपने आप को जान

अपने आप को जान

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अपने आप को जान, 

छोड़ नाम की झूठी पहचान। 

तू अंश उस भगवान का, 

फिर क्यों मोह सांसारिक पहचान का। 


झाँक अंदर एक बार अपने, 

त्याग इस भव के झूठे सपने। 

मत रह वास्तविकता से अनजान, 

अपने आप को जान। 


क्यों तू संसार के पीछे भागता? 

सुख दुःख के भ्रम से क्यों नहीं जागता। 

अपने परम लक्ष्य का खुद को करा भान, 

और अपने आप को जान। 


यह शरीर केवल माँस का टुकड़ा थोड़े लहू के साथ, 

इसमें उलझने से, सिवा मलिनता, कुछ न लगेगा हाथ। 

अपने तात्विक रूप का खुद को करा ज्ञान, 

और अपने आप को जान। 


बचपन में खिलौने, युवावस्था में प्रेम,

वृद्धावस्था में विश्राम का विचार, 

सारा जीवन बीत गया, अब केवल चिता का इंतज़ार। 

अब तो करले अपने असली परिचय का मान, 

और अपने आप को जान। 


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