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Ashish Pathak

Romance Classics Fantasy

4  

Ashish Pathak

Romance Classics Fantasy

अपनाया फिर छोड़ दिया।

अपनाया फिर छोड़ दिया।

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सितम उसने मुझपर पहला कर छोड़ दिया, 

उदासीन आँखो को बहला कर छोड़ दिया।


वो पत्थर बन कर मेरे सर पर लगता रहा,

मैंने उसे उठा कर सहला कर छोड़ दिया।


कई मुद्दे को उसने कुरेद कुरेद कर देखा,

कई जख्मों को मैंने मसला कर छोड़ दिया।


लोग सोच में थे के मैं क्या लिखने वाली हूँ ,

मैंने दर्द से दिल को दहला कर छोड़ दिया।


मैंने जाना ही नहीं था अंजाम बेबसी का,

उसे इश्क का पैगाम कहला कर छोड़ दिया।


एक बागवान सजाया था अपने दिल में मैंने,

इस सफर में उसने टहला कर छोड़ दिया।


मेरे आसमां पर कई टुकड़े गम के बादल के,

मैंने उनके ही जैसे उन्हें घहला कर छोड़ दिया।


एक रात मेरी गुजरी सारी मयकदे के अंदर,

एक बर्फ को मैंने बस छहला कर छोड़ दिया। 


उसने आजमाया मेरी मोहब्बत को कुछ यूँ ,

बस नयनों को उसने नहला कर छोड़ दिया।


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