यहाँ हर शख्स महज़ झूठा नज़र आता है
यहाँ हर शख्स महज़ झूठा नज़र आता है
यहाँ हर कोई रूठा रूठा सा नजर आता है,
हर शख्स यहाँ झूठा-झूठा सा नजर आता है।
सोच अभी आसमान तक यूँ तो पहुंचे नहीं हैं,
विचार फिर भी छोटा-छोटा सा नजर आता है।
आशियाना बसा ही नहीं...,यहाँ मेरा आज तक,
फिर भी शहर सारा लूटा-लूटा सा नजर आता है।
ख्याल बस अब तो बेख्याली रिश्तों के रखते हैं ,
अपनों की आत्मा,घुटा-घुटा सा नजर आता है।
यूँ तो हर शख्स मिलता है मुस्कुराते हुए सब से,
तकिये पर अश्क मोटा-मोटा सा नजर आता है।
कोई रंजोगम कोई शिकायत नहीं है किसी से,
मन भी सबका खोटा-खोटा सा नजर आता।
