STORYMIRROR

Ashish Pathak

Abstract Drama Fantasy

4  

Ashish Pathak

Abstract Drama Fantasy

यहाँ हर शख्स महज़ झूठा नज़र आता है

यहाँ हर शख्स महज़ झूठा नज़र आता है

1 min
248

यहाँ हर कोई रूठा रूठा सा नजर आता है,

हर शख्स यहाँ झूठा-झूठा सा नजर आता है।


सोच अभी आसमान तक यूँ तो पहुंचे नहीं हैं,  

विचार फिर भी छोटा-छोटा सा नजर आता है।


आशियाना बसा ही नहीं...,यहाँ मेरा आज तक,

फिर भी शहर सारा लूटा-लूटा सा नजर आता है।


ख्याल बस अब तो बेख्याली रिश्तों के रखते हैं ,

अपनों की आत्मा,घुटा-घुटा सा नजर आता है।


यूँ तो हर शख्स मिलता है मुस्कुराते हुए सब से,

तकिये पर अश्क मोटा-मोटा सा नजर आता है।


कोई रंजोगम कोई शिकायत नहीं है किसी से,

मन भी सबका खोटा-खोटा सा नजर आता।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract