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Ashish Pathak

Abstract

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Ashish Pathak

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ख्याब

ख्याब

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नज़्म लिखकर के थोड़ा मिटाता रहा,

जो थे भूले मुझे मैं भुलाता रहा।


जिंदगी ने मुझे था तो जख़्मी किया,

मैं था पागल जो फिर भी मुस्कुराता रहा।


आग सूरज में जितनी थी मेरे अंदर लगी,

रोकर आँसू से उसको बुझाता रहा।


जिंदगी ने मुझे तो रुलाया बहुत,

मैं तो हँसकर ग़मो को छुपाता रहा।


ख्याब आँखों में लेकर मैं सो ना सका,

तेरी यादों में आँसू बहाता रहा।


रात कटती नहीं दिन भी ढलता नहीँ,

कोई अपना मुझे है सताता रहा।


जान मेरी निकल कर चली थी गई,

बोझ खुद मैं फिर भी उठाता रहा।



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