अपमान
अपमान
शब्दों की क्या रेल चली ये,लगती है कितनी भारी।
पसंद नहीं है सबको फिर भी, कुछ को यह लगती प्यारी।
न जाने वो क्यों नहीं जानते हैं मानवता का भाव।
आक्रोश के भावों में फिर अपमान की आती बारी।
मीठे शब्दों की भाषा, क्यूँ हर कोई कह नहीं पाता।
देकर फिर सम्मान किसी को, जाने क्या उनका जाता।
कटु शब्दों के प्रहार से ही, बढ़ती है यह बीमारी।
आक्रोश के भावों में फिर अपमान की आती बारी।
दिखाकर सयंम खुद पर ही तुम कर सकते हो यह काम।
होकर सफल जीवन में अपने ,कर लो फिर अपना नाम।
यूँ बेज्जत न करो किसी को,है यह तो इक महामारी।
आक्रोश के भावों में फिर ,अपमान की आती बारी।
पैसा नौकर चाकर सब भी,भौतिकता की हैं बातें।
मानवता के भावों में फिर सुकून से कटती रातें।
अहंकार को यूँ न बढ़ाओ, सबकी आती है पारी।
आक्रोश के भावों में फिर,अपमान की आती बारी।
मीठी चाय लगती है अच्छी, कड़वा लगे है काढ़ा।
मधुर बोल-बोल जुबाँ से,इससे प्रेम बढ़े है गाढ़ा।
घृणित शब्द बोलकर तुम, न बो देना नफरत की क्यारी
आक्रोश के भावों में फिर,अपमान की आती बारी।
दो इज्जत सभी को ताकि, न बहे इन नयनों से वारी।
आप भी खुश रहो जग में, और बढाओ सबसे यारी।
आंखों से भी मीठा बोलो सब, जैसे हैं बनवारी।
आक्रोश के भावों में फिर, अपमान की आती बारी।