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Harish Chamoli

Abstract

2.5  

Harish Chamoli

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खुद को पहचानो

खुद को पहचानो

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दिल में छिपी तमस को तुम,खुद से जरा हटाकर तो देखो।

फितूर अपने मस्तिष्क का,पुष्प सा महकाकर तो देखो।

जीवनदाता परमेश्वर की, महिमा का गान करो कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम,आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


काम आये जीवन किसी के,ऐसा हुनर लाकर तो देखो।

लालच को स्वयं दूर भगा,मन पर बिजय पाकर तो देखो।

क्रोद्ध ज्वाला में न जलकर,शान्ति का पाठ पढ़ाओ कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम,आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


होना है सफल जीवन में गर, डर को हराकर तो देखो।

बुराई का अन्त कर तुम, दिल में प्यार बसाकर तो देखो।

साहिलों से लड़ने को तुम,पत्थर से भी टकराओ कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम,आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


अपने वजूद के हेतु तुम,खुद को आजमाकर तो देखो।

अंधकार मन का दूर कर,स्नेहदीप जलाकर तो देखो।

संघर्ष को समझना है तो, ठोकर खाकर संभलो कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम,आज थोड़ा जगाक र तो देखो।


समझो जन के भावों को,ईर्ष्या-द्वेष मिटाकर तो देखो।

दुःख दर्द मिटाने को सबका,इक कदम बढ़ाकर तो देखो।

रह न जाये भूखा कोई,गरीब को भोजन खिलाओ कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम,आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


प्यास को महसूस कर,किसी की प्यास बुझाकर तो देखो।

बचपन जीने के लिये, खुद को बच्चा बनाकर तो देखो।

भुलो अपने सारे गम को,अकेले में गुनगुनाओ कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


हौसलों की उड़ान में,इरादों को मकसद बनाकर तो देखो।

प्रगति पथ पर तुम, हिम्मत से कदम उठाकर तो देखो।

खुद में जोश जगाकर,आलस की चादर हटाओ तो कभी।

अपनी अन्तःशक्ति को तुम आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


हर पथ हो आसान, लक्ष्य पर नजर लगाकर तो देखो।

जग सक्षम भी होगा इक दिन,दो अक्षर पढ़ाकर तो देखो।

अहंकार न करो जीवन में,परोपकार भी करो कभी

अपनी अन्तःशक्ति को तुम,आज थोड़ा जगाकर तो देखो।


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