अनुबंध..
अनुबंध..
हो सकता है
सुनने में थोड़ा बचकाना लगे
कि प्रेम की उंगली थामकर
कैसे जाया जा सकता है
उस अनंत की ओर
जहां
नक्षत्रों के पार
बसी होगी कोई छोटी सी दुनिया
सिर्फ हमारे लिए ही !!
और..
ऐसा भी हो जाता है
कि सबसे छिपाकर
जिया जा सकता है "प्रेम" अब भी
बिना किसी अनुबंध के तहत
ठीक प्रेम की ही तरह !!